सबसे पहले आप का परिचय वास्तु से{ Top vastu tips }
वास्तु से तात्पर्य है जिस भूमि पर हम निवास/व्यापार कर रहे हैं या जो
भूखण्ड हमारे पास है। इस दुनिया की हर चीज पाँच तत्वों से मिलकर बनी है पृथ्वी,
जल, अग्नि, आकाश और वायु से घटक समाविष्ट हैं इनमें से किसी एक की मात्रा
भी कम ज्यादा हो गयी तो मनुष्य पर इसका असर देखने को मिलता है। जैसे असाध्य
रोगों एवं आर्थिक परेशानी का होना।
इस सम्बन्ध मे जानकारी प्राप्त करने के लिए सबसे पहले आवश्यकता है
दिशा ज्ञान की। क्योंकि जब तक दिशा का सही ज्ञान नहीं होता, हम वास्तु सम्बन्धित
सही जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते।
जिस तरह आयुर्वेद में स्वस्थ शरीर के लिए पंचतत्वों का संतुलन बना रहना
आवश्यक है, उसी प्रकार भवन निर्माण में भी इनका संतुलन जरूरी है। अतः अपना
घर-मकान बनाते समय या प्लॉट खरीदते समय वास्तु का भी थोड़ा बहुत ध्यान रखें,
तो उपयोगी रहेगा।
.भूखण्ड का आकार
यदि आप किसी कारणवश प्लॉट नहीं खरीद पा रहे हैं तो ऐसा भूखण्ड भी ले
सकते हैं जिसकी दो भुजाएं बड़ी और दो छोटी हों। चारों कोण 90 डिग्री के हों। ऐसे
भूखण्ड को आयताकार भूखण्ड कहते हैं। वृत्ताकर भूखण्ड भी भवन निर्माण के लिए
उत्तम रहता है। वैसे अपनी आर्थिक दृष्टि को ध्यान में रखते हुए ऐसा भूखण्ड खरीदना
ही ठीक रहता है जिसमें दिशा, आकार, हवा, पानी एवं प्रकाश की उचित व्यवस्था हो।
रसोई घर
दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) कोण का स्वामी अग्निदेव को माना गया है। इस स्थान
में यदि रसोई बनाई जाए, तो उत्तम रहता है। अत: आप रसोई घर बनवाते समय निम्न
बातों का ध्यान रखें तो ठीक होगा-
- खाना बनाते समय मुंह पूर्व की ओर रहे। फ्रीज रसोई के वायव्य क्षेत्र में रखें।
पीने के पानी का स्थान उत्तर-पूर्व कोण (ईशान) में हो। - चूल्हा या स्टोव रसोईघर के दक्षिण-पूर्व कोण (आग्नेय) में रखना चाहिए।
- आप उत्तर-पश्चिम कोण (वायव्य) में भी रसोई घर बना सकते हैं। उत्तर-पूर्व
कोण (ईशान) तथा दक्षिण-पश्चिम कोण (नैऋत्य) में रसोई घर बनाने से बचें।
• रसोई घर खुला एवं हवादार हो।
ड्राईंग रूम
ड्राईंग रूप में स्वागत कक्ष, भवन के उत्तर-पश्चिम या उत्तर-पूर्व कोण में बनाना
ठीक रहता है।
ड्राइंग रूम में सोफा या सजावटी फर्नीचर उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में रखें।
ड्राईंग रूम का दक्षिण-पश्चिम क्षेन्न फर्नीचर व भारी वस्तुयें रखने के लिये उत्तम.
स्थान है।
• ड्राइंग रूम के पूर्व एवं उत्तर का क्षेत्र यथासंभव खाली रखें।
फर्नीचर जहां तक हो वर्गाकार या आयाताकार रखें। टेलीफोन या टीवी दक्षिण-पूर्व
कोण में रखें।
शयन कक्ष
आइए इन्हें जानें-
मुख्य शयन कक्ष को दक्षिण-पश्चिम कोण (नैऋत्य) में बनाएं।
- शयन कक्ष अन्य कमरों से बड़ा हो।
- सोते समय सिर दक्षिण की ओर हो।
- आयताकार एवं वर्गाकार शयन कक्ष होने पर सम्पन्नता एवं शान्ति मिलती है।
डाइनिग रूम
आजकल खाने का कमरा अलग से न बनाकर ड्राईंग कम डाइनिंग रूम बनाने
का चलन है। यदि आप खाने का कमरा अलग से बना रहे हैं, तो इसे भवन के
पश्चिमी भाग में बनाएं।
- पूर्व या पश्चिम की ओर मुख करके भोजन करें।
डाइनिंग टेबल को पश्चिम दिशा में रखें। आयताकार एवं वर्गाकार फर्नीचर ही
कमरे में रखें।
बच्चों का कमरा
- बच्चों का कमरा पश्चिम में बनायें। उत्तर और पूर्व में भी बच्चों का कमरा बना
सकते हैं।
पूर्व में विवाहित युगल का कमरा न बनायें, अविवाहित बच्चों के लिए कमरा
बनवाने में कोई परेशानी नहीं है।
बच्चों का पलंग इस प्रकार रखें कि सोते समय उनका सिर पूर्व की ओर रहे। - विवाह योग्य कन्या का शयन कक्ष उत्तर-पश्चिम (वायव्य) कोण में हो।
पूजा घर
अपने घर में पूजा के कमरे का स्थान अहम माना जाता है। इसलिए पूजा का
स्थल खुला एवं बड़ा बनवाएं तथा निम्न बातों का ध्यान रखें-
- पूजा का स्थान भवन के उत्तर-पूर्व क्षेत्र (ईशान) कोण में बनाएं। पूर्व दिशा की
ओर मुख करके पूजा करें। - दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा न करे। पश्चिम की तरफ मुख करके पूजा
कर सकते हैं।
स्नान गृह एवं शौचालय
यदि आप स्नानघर बनवा रहे हैं, तो इसे पूर्व-पश्चिम दिशा में बनाएं।
- बाथ टब को पश्चिम दिशा में रखें।
यदि आप स्नानघर में शौचालय भी बना रहे हैं, तो इसे कक्ष के पश्चिम या
उत्तर-पश्चिम में बनाएं। - भवन की उत्तर-पूर्व, पूर्व एवं दक्षिण-पश्चिम दिशा में शौचालय का निर्माण कभी
न करायें। - शौचालय में सीट का मुख दक्षिण और उत्तर की ओर रखें।
- शौचालय भवन के पश्चिम, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण क्षेत्र में ही बनवायें।
सीढ़ियां
सीढ़ियां सदा घर के अंदर ही बनवाना ठीक होता है। सीढ़ियां सदा दक्षिण या
पश्चिम में बनाएं। घर के मध्य में भी सीढ़ियां न बनवाएं। उत्तर-पूर्व में भूलकर भी
सीढ़ियां न बनाएं। सीढ़िया सदा दाई ओर ही घूमी होनी चाहिए।
मेन स्विच व विद्युत कक्ष
अग्नि या विद्युत शक्ति मीटर बोर्ड, मेन स्विच, विद्युत कक्ष आदि भवन में
दक्षिण पूर्व (आग्नेय) दिशा में लगाना चाहिए।
अध्ययन कक्ष
उत्तर-पूर्व में अध्ययन कक्ष बनाना बहुत अच्छा होता है। इसके साथ ही ईशान
कोण में, पूर्व दिशा में पूजा गृह के साथ अध्ययन कक्ष बनाना सर्वोत्तम है।
छत पर पानी की टंकी
भवन में छत पर पानी की टंकी के लिए उत्तम स्थान उत्तर-पश्चिम है, लेकिन
पश्चिम भी इसके लिए चुन सकते हैं।
भूमिगत पानी की टंकी
भवन में भूमिगत जल स्थान एवं बोरिंग के लिए उत्तर-पूर्व (ईशान क्षेत्र)
सबसे उत्तम होता है। यह स्थान भगवान का केन्द्र माना जाता है। भूमिगत जल के
लिए दूसरा स्थान पूर्वी क्षेत्र एवं उत्तर को भी चुन सकते हैं।
पेड़
भवन के उत्तर और पूर्वी क्षेत्र में ऊँचे पेड़ न लगायें। सिर्फ दक्षिण और
पश्चिम में ऊँचे पेड़ लगाने चाहिए।
खुला स्थान
प्लॉट में सबसे ज्यादा खुला स्थान उत्तर, पूर्व एवं ईशान क्षेत्र व उसके बाद
दक्षिण और पश्चिम में रखें।
अन्य वास्तु सम्बन्धित नियम
- मुख्य शयन कक्ष दक्षिण और पश्चिम में रखें।
. भवन में दर्पण को दक्षिण एवं पश्चिमी दीवार पर लगायें।
सोते समय अपना सिर दक्षिण या पश्चिम में रखें। उत्तर दिशा में अपना सिर कभी
न रखें।
• पूजा कक्ष उत्तर पूर्व (ईशान क्षेत्र) में रखें। मूर्तियाँ पूर्व या पश्चिम की ओर मुख
करके रखें। - शौचालय में सीट का मुख दक्षिण या उत्तर की ओर करें। पूर्व और पश्चिम की
ओर नहीं।
• सीढ़ियाँ हमेशा दाँयीं ओर घूमनी चाहिए। - भवन में भूमिगत स्थान उत्तर-पूर्व (ईशान क्षेत्र) में ही बनायें।
- कोई भी बड़ा पेड़ उत्तर एवं पूर्व में न लागयें। उन्हें घर के दक्षिण एवं पश्चिम
क्षेत्र में ही लगायें।
रसोई में खाना बनाते समय मुख पूर्व की ओर अथवा पश्चिम में रख सकते हैं।
लेकिन दक्षिण की ओर मुख करके न बनायें। ।
दरवाजा हमेशा भवन के अन्दर की ओर खुला चाहिए, बाहर की ओर नहीं। - सभी दरवाजे सीधे हाथ की तरफ ही खुले।
पलंग कमरे की बीम के नीचे नहीं आना चाहिए।
किसी भी कमरे में पाँच कोने नहीं होने चाहिए। - दरवाजे एवं खिड़कियाँ दक्षिण एंव पश्चिमी क्षेत्र में नहीं बनवानी चाहिए।
- अतिथि कक्ष उत्तर-पश्चिम (वायव्य) क्षेत्र में बनवायें।
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